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A**R
Just Marvelous!!
वीर सावरकरजी के चरित्र बिना आधुनिक भारत की कल्पना बिल्कुल अधूरी हो जाती हैं । खास करके १९००-१९५७ के कालखंड में अगर वीर सावरकर नही होते तो आज हमजों नीरस इतिहास पढ़ते हैं वही रह जाता । विक्रमजी ने जो हमारे सामने उनका चरित्र उजागर किया वो तो बिल्कुल अविश्वसनीय है। भारत के इतिहास में उनका स्थान केवल ५-६ पंक्तियों में लिखा गया है वो में भारत का दुर्भाग्य समझता हूं। सभी भारतवासी को में यह पुस्तक पढ़ने के लिए आग्रह करता हूं।
S**J
अद्भुत
लेखक से आग्रह हे की जल्दी इसका अगला भाग भी हिंदी में प्रकाशित करे।
H**H
An eye opener
Pushes you to re look at the history of freedom struggle we have been taught in schools. Also, pushes you to question the perceptions that have been built around many concepts like Hindustva and personalities like Savarkar. Why people who don’t like Savarkar run away from an engaging dialogue based on historical facts rather than opinions of some biased minds!
R**A
देर आये दुरुस्त आये
देर से ही सही पर आखिरकार किसी ने सावरकर को निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत किया और वो भी प्रमाणों के साथ। यह किताब लेखक के व्यक्तिगत विचार न होकर एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। विक्रम संपत ने जिस निष्पक्षता से सावरकर को समझा और प्रस्तुत किया है वो वाकई सराहनीय है। एक बात जो हैरान करने वाली है वो यह है कि निष्पक्षता से सावरकर को देखने पर प्रतीत होता है कि उस पूरे कालखंड में केवल सावरकर ही एकमात्र व्यक्ति नज़र आते है जिनकी उंगली उस समय नब्ज़ पर थी। केवल एक बार इतिहास को अलग नज़र से देखें या शब्दावली को बदलें तो आप पाएंगे कि जिन्हें आप सेनानी कहते है वो वाकई में अंग्रेजों के वफादार और जिन्हें आप अतिवादी/चरमपंथी कहते है वो क्रांतिकारी/राष्ट्रवादी नज़र आते है। यह किताब ना केवल उस नज़रिये को प्रस्तुत करती है बल्कि उसके प्रमाण भी देती है।
N**T
सभी भारतीय को अवश्य पढ़ना चाहिए।
हिन्दी अनुवाद की गुणवत्ता अति उत्तम है। हमारे पास दोनो अंग्रेजी एवं हिन्दी संस्करण की पुस्तक है, दोनो ही प्रशंसनीय है।
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3 weeks ago
1 month ago